Saturday, 11 June 2011


प्रमोद राजपाल की खोज ने नींव रखी कार्ट्रिज रि-सायकलिंग एवं रि-मेंयुफेक्चरिंग उद्योग की

आज से लगभग २० वर्ष पहले  देश में कंप्यूटर और प्रिंटर्स ही नहीं बल्कि इनके इंक कार्ट्रिज तक आयात किये जाते थे. जाहिर है न सिर्फ ये महंगे थे बल्कि बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी इनके आयात पर खर्च हो जाती थी. ऐसे में दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढाई कर काम की तलाश में भटक रहे एक नवयुवक को नयी बात सूझी कि पुराने कार्ट्रिज के सूखे रिब्बन में क्यों नहीं इंक दुबारा भरी जा सकती है. एक बार रिबन को बाहर निकालने और उसे दुबारा इंक से गीला करने  के लिए उसके जोइंट को काटना पड़ता था. समस्या यह थी कि उसे दुबारा कार्ट्रिज में डालने के बाद पहले जैसा जोड़ कैसे लगाया जाए? अगर जोड़ सही नहीं होगा तो प्रिंटिंग के वक्त अटकेगा. विदेशों में तो महंगी मशीनों से यह काम किया जाता था अब उस युवा के लिए इतने पैसे जुटाने संभव नहीं थे. लेकिन उसने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और अपनी लगन ,हौंसले और संयम के बूते एक जोड़ लगानेवाली हाथ से चलने वाली मशीन सस्ते में ही बना डाली.

इस मशीन के बल पर उसने प्रिंटर उपयोगकर्ताओं को लगभग नहीं के बराबर कीमत पर बेकार हो चुकी कार्ट्रिज को दुबारा इस्तेमाल करने का विकल्प दिया. यह थी शुरुआत कार्ट्रिज की रिफिलिंग और रिइंकिंग के एक अनोखे उद्योग की. क्या आप जानना चाहेंगे कि वह युवक कौन था? और कोई नहीं प्रमोद राजपाल हैं जो आज प्रोडॉट  जैसे नामी ब्रांड के मालिक हैं और हिन्दुस्तान ही नहीं तमाम अन्य देशों में उनके ब्रांड नाम का बोलबाला है.

आज भी वे ज़्यादा मुनाफे में नहीं बल्कि क्वालिटी प्रोडक्ट अत्यंत उपयुक्त कीमत पर प्रिंटर उपयोगकर्ताओं तक पहुंचाने की नीति में विश्वास रखते हैं.शायद यही उनका गुरुमंत्र है जिसके बूते देश के रि इंकिंग एवं कार्ट्रिज के कारोबार में उनकी कंपनी की हिस्सेदारी अन्य प्रतिद्वंदियों के मुकाबले कंहीं ज़्यादा है और निरंतर बढती जा रही है.

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